Saturday, June 28

ब्रह्मचारी श्री रामप्रकाश जी महाराज का जन्मदिवस बडी श्रद्धा से मनाया गया।

  • ब्रह्मचारी श्री रामप्रकाश जी महाराज राम नाम के रंग मे रंगे निराले महान करनी बाले सन्त थे ।

लुधियाना (संजय मिंका) नौलखा बाग कालोनी तपोमय भूमि श्री राम शरणम् आश्रम मे आज इस युग के महान संत परम पूज्य श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज के परम तपस्वी शिष्य ब्रह्मचारी श्री रामप्रकाश जी महाराज का जन्मदिवस बडी श्रद्धा से मनाया गया।किया पावन सृष्टि को जप कर नाम जपा कर नाम उन्ही महाराज के चरणों में सदा प्रणाम सदा प्रणाम । उच्चारणों उनको श्रद्धासुमन अर्पित किये। अमृवाणी पाठ किया गया के पश्चात सत्संग मे भक्त महेश सधाक जी ने कहा ब्रह्मचारी श्री रामप्रकाश जी महाराज की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि तप और त्यागा की महान मूर्ति ब्रह्मचारी श्री रामप्रकाश जी महाराज राम नाम के रंग मे रंगे निराले महान करनी बाले सन्त थे । हजारों मिल दूर बैठ कर प्राणीमात्र का अपने संकल्प से कल्याण कर देते थे । कभी किसी को कहते भी नही थे ।वो सदैव कहते राम कृपा आप पर है गई । आप राम नाम पर पूरा भरोसा राखो । राम नाम का जाप कलयाणकारी है । यह आश्रम तपोमय भूमि है जिस पर परम तपस्वी सन्त ब्रह्मचारी जी ने जप तप साधना की यह की माटी चंदन गुलाल है । जो जहा आता है उस को राम नाम की मस्ती चढ़ जाती है यह वर राम दरबार से उनको प्राप्त था । जो उनसे नाम लेता था उनकी सूरती गगन मंडल पर चढ़ जाती थी घंटों वो नाम लीन होकर बैठा रहते थे ।सब सुद्धबुध खो जाती थी नाम जपने से नामी के साथ सम्बंध जूड़ जाता था। हजारों मिल दूर विदेशों मे बैठे नाम रसिक जिज्ञासाओं को आश्रम मे बैठ कर नाम मन्त्र दिक्षा दे देते थे । इतने महान सन्त होते हुए भी उन्होंने अपने आप को छुपा कर रखा ।कभी भी अपनी महिमा नही गई ।वो कहा करते थे यह सब राम कृपा और स्वामी की कृपा है मे कुछ नही करता ।उन्हो ने घर छोड़ते कहा था मैने अब सारे संसार को परिवार बना लिया । जब एक महापुरुष अपना घर छोड़ता है तो हजारों का कल्याण करता है । अपने ऊपर उन्होने कभी फिजूल खर्च नही किया सादगी से रहे । गरमी के समय वो बिना पांखे के रेहते थे ।आप अनन्त गुणो की खान थे।आप ने देश मे र्सव प्रथाम भ्रुण हत्या के विरूद्ब अलख जगाई श्री स्वामी सत्या नन्द जी महाराज ने अन्तिम साधना सत्संग लुधियाना मे 1958 मे लगाया था तब ब्रह्मचारी जी ऊन की माला बना कर साधको को नाम जपने के लिए देते थे।उन्हो ने ऊन की माला से नाम जपने की प्रथा चलाई।उनकी वाणी में अदभुत शक्ति थी जो भी पास आता उस पर बहुत प्रभाव पड़ता था ।वे स्पष्ट और निर्भीक हो कर विचार रखते थे आज हम सब उनको श्रद्धासुमन अर्पित करतें है सत्संग धुन गईउन्हां चरणां तो मैं बलिहारी जिन्हां सानूं राम दसया

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