लुधियाना(संजय मिंका )-वरिष्ठ समाज सेवी डॉ प्रदीप अग्रवाल ने बैंकों के निजीकरण को लेकर अपने विचार प्रकट किए की देश मे कांग्रेस पार्टी ही है जो गरीब मेहनतकश जनता का दुख-दर्द समझती है। इसलिए पूंजीपतियों के धन में विकास के बजाय देश की पूंजी में विकास चाहती है। जिससे आम जनता का भला हो सके कि हम सरकारी बैंकों के निजीकरण की समर्थक नहीं है। जबकि भाजपा बहुत जल्द बाजी करके निजीकरण में ही व्यक्त है यह देश के लिए अति दुखद है डॉ अग्रवाल ने निजीकरण के नुकसान के बारे में देश की जनता को बताया कि निजीकरण की वजह से बैंकों का मुख्य उद्देश्य समाज सेवा न रहकर मुनाफा कमाना रह जाएगा। जिससे समाज के अधिकांश लोगों को सस्ती और सुलभ बैंकिंग सेवाएं नहीं मिल पाएंगी।बैंकों के निजीकरण के विरुद्ध 9 लाख बैंक कर्मचारियों द्वारा अपनी बेतन कटवा कर भी 16-17 दिसम्बर को की गई दो दिन की देशव्यापी हड़ताल किसानों के आंदोलन की तरह जुझारू व प्रेरणादायी है और कहा कि भाजपा सरकार में सभी को अपने हको के लिए संघर्ष करना होगा। सुरक्षित नहीं रहेगी आपकी धन राशि यह विचार जोर पकड़ रहा है कि व्यापार करना सरकार का काम नहीं है। एक सीमा तक यह बात सही है कि व्यापार करना सरकार का काम नहीं है, लेकिन कुछ मूलभूत सुविधाएं प्रदान करना सरकार की जिम्मेदारी है। 1969 के आस-पास बहुत से निजी बैंक डूब गए थे। ये बैंक सिर्फ पूंजीपतियों को ही ऋण प्रदान करते थे। आमजन की पहुंच से भी बैंक बहुत दूर थे। जो बैंक डूब रहे थे, उनमें आमजन की बहुत सारी राशि डूब जाती थी। अब भी हालात यही हैं। यस बैंक, जैसी कई घटनाएं हुई हैं। अगर सरकारी बैंकों का निजीकरण किया गया तो आमजन की पूंजी सुरक्षित नहीं रहेगी। अगर कोई बैंक डूबता है तो सिर्फ 5 लाख तक का बीमा प्रत्येक खाते के लिए निर्धारित किया गया है। अगर एक व्यक्ति अपनी जीवन भर की पूंजी लगभग 40 लाख बैंक में रखता है और वह बैंक डूबता है तो मात्र 5 लाख रुपए की राशि ही उसे मिलेगी, वह भी बहुत चक्कर काटने के बाद। भारत में बहुत बड़ी आबादी है जो पेंशन और अन्य सरकारी लाभ पाने के लिए बैंकों से जुड़ी हुई है। निजी बैंकों में न्यूनतम राशि 5000 से अधिक रखना अनिवार्य है। अगर ऐसा हुआ तो जनता को भारी तकलीफ हो सकती है। सरकारी बैंकों की एक समस्या एनपीए है, जिसके लिए सरकार कड़ी कार्रवाई की कोई छूट नहीं देती। कर्ज माफ कर दिए जाते हैं, जिसका प्रभाव बैंकों पर पड़ता है। सरकार अपनी योजनाएं सरकारी बैंकों के माध्यम से ही क्रियान्वित करती है, जिससे ये बैंक स्वतंत्र हो कर कार्य नहीं कर पाते। बैंकों को स्वतंत्रता की आवश्यकता है, न कि निजीकरण की। सरकार अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बैंकों का निजीकरण कर रही है, इसमें जनकल्याण या देश हित नहीं है।डॉ प्रदीप अग्रवाल ने केन्द्र सरकार से मांग करते हुए कहा कि बैंक के निजीकरण पर सरकार पुनर्विचार करे
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