Saturday, May 10

लुधियाना के दवा विज्ञानी डॉ. औलख ने खोजी कोरोना की दवाई

लुधियाना (विशाल, रिशव )   ड्रग लाइसेसिंग अथारिटी पंजाब, डायरेक्टोरेट ऑफ आयुर्वेदा और पंजाब सरकार की सलाह व दिशा-निर्देशों के अनुसार ग्रेगर मेंडल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन जेनेटिक्स ने ड्रग ऑफ च्वाइस फॉर कोरोना नामक दवा की खोज के लिए विस्तृत खोज प्रोजेक्ट भारत सरकार के आयुष मंत्रालय को भेजा है।इस संबंध में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस के दौरान क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के रह चुके लेक्चरार व इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर और अंततराष्ट्रीय पेटेंट होल्डर दवा वैज्ञानिक बीएस औलख ने बताया कि अलग-अलग बीमारियों के लिए दवाइयों की खोज करना उनका शौक है। उनकी ओर से लगातार की जा रही खोज के कारण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, साऊथ अफ्रीका व न्यूजिलैंड की सरकारें मैमेलियन सैक्स फिक्सर दवाई खोजने पर उन्हें मेडिसन रिसर्च पेटेंट से सम्मानित कर चुकी हैं। उन्होंने दूसरी रिसर्च कोरोना की दवाई को लेकर की है। यह एक ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीवॉयरल दवाई है, जो वायरस के कई रूपों पर प्रभावी है। यह दवाई केवल कोरोना मरीज के इलाज हेतु है, ना कि कई इम्यूनिटी बूस्टर अथवा वैक्सीन है। 500 मिलीग्राम वाले कैप्सूल के तौर पर तैयार यह दवाई 2000 में ही खोज ली गई थी। डॉ. औलख ने बताया कि कोरोना के इलाज को लेकर एशियन जर्नल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में अगस्त 2020 और जून 2021 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ क्रंट रिसर्च में उनके  रिसर्च पेपर प्रकाशित हो चुके हैं। आयुर्वेदिक फार्मूले से बनी यह दवा सोलानम जैंथोकॉर्पम पौधे के हर्बल स्रोत से तैयार की गई है। हालांकि यह दवाई जानवरों में होने वाली पिकोर्ना वायरस इन्फेक्शन को रोकने के लिए तैयार की गई थी, लेकिन यह दवा इन्फ्लुएंजा वायरस पर भी काफी प्रभावी है। मेडिसन हिस्ट्री में इस दवाई के एचआईवी पर भी असर करने का डाटा उपलब्ध है। इस दवाई का इस्तेमाल कोरोना मरीजों पर करने का ख्याल तब आया, जब जीका वायरस की दवा रेमडेसीवर और इन्फ्लूंजा की दवा फैवीपीरवीर दवाई का कोरोना मरीजों पर इस्तेमाल शुरू हुआ। वल्र्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) और इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने भी इन दवाइयों के इस्तेमाल की सिफारिश की। भारत के ड्रग कंट्रोलर ने भी बिना किसी ठोस स्टडी व जरूरी डॉक्युमेंट्स के इन दवाइयों को कोरोना मरीजों पर इस्तेमाल करने को मंजूरी दे दी थी।डॉ. औलख ने बताया कि उन्होंने अपनी रिसर्च से तैयार की गई दवाई का इस्तेमाल या परीक्षण कोरोना मरीजों पर करने के लिए डेढ़ साल पहले ही सरकार को लिख दिया था। इस संबंध में वे प्रधानमंत्री, सेहत मंत्री व सेहत विभाग से जुड़े अलग-अलग अधिकारियों को पत्र लिख चुके हैं। उन्होंने आईसीएमआर और केंद्रीय सेहत मंत्रालय को अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट भेजा है, मगर वहां से कोई बढिय़ा रिस्पॉंस नहीं मिल पाया है। उन्होंने भारत के ड्रग कंट्रोलर के साथ मीटिंग की मांग भी की, मगर इस मीटिंग के लिए उनसे 5 लाख रुपए की राशि जमा कराने की शर्त रखी गई। डॉ. औलख ने बताया कि द न्यू ड्रगस एंड क्लिनिकल ट्रायल्स रूल-2019 का हवाला देकरउन्हें दवाइयों की रिसर्च करने से रोका जा रहा है। सरकार का कहना है कि कार्पोरेट जगत के बड़े घरानों को ही दवा खोजने का हक है। जबकि कुदरत ने हम सभी इंसानों को सोचने व खोज करने के लिए दिमाग दिया है। चरक संहिता, भैसज्या, रत्नावली व अस्टांग ह्रदयम इत्यादि महान आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी इस दवा का विवरण मौजूद है। गुजरात आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी जामनगर, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी और मुरादाबाद यूनिवर्सिटी जैसे बड़े संस्थानों ने भी इस दवा पर काफी खोज की है। इससे यह दवा फेज-3 के दवा ट्रायल से आगे निकल जाती है। इस कारण इसे भी कोरोना मरीजों के लिए इमरजेंसी इस्तेमाल के तौर पर मान्यता मिलनी चाहिए। क्योंकि हम लोग करीब चार हजार सालों से आयुर्वेद के ज्ञान व खोजों का सम्मान करते आ रहे हैं।

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