Friday, May 9

परिस्थितियों में ऐसा चिराग!!

लुधियाना(आयुष मित्तल)आज से पाँच दशक पहले उस घर में भी बेटे के विवाह की शहनाइयाँ गूंज उठीं जिसका सभी को बड़ी बेसब्री से इंतजार था । दुल्हन के आने से छोटा पर भी भरा 2 सा लगने लगा था । एक वर्ष के अंदर ही बेटी के रूप में नन्ही , प्यारी सी किलकारी गूंजी , घर और भी भर गया । विडंबना पूरे वर्ष बाद ठीक उसी दिन एक और बेटी ने दस्तक दे दी । सबने स्वागत कहा था । कुछ महीने लाड चात में बीते , लेकिन सहसा संदेह के बाढलों ने छोटी ….. सी बस्ती को घेर लिया . जब पता चला कि बेटी जन्म से ही मूक बधिर है …. स्तीकारा । तीन वर्ष पश्चात जिस्म पिछले … परिणाम स्तरूप फिर बेटी , जल्दी ही पता चल गया वह भी वैसी ही . ईश्वर को उलाहना कतई नहीं । थोड़ा सा अतराल नव वर्ष का नया उपहार फिर कन्या लेकिन संतुष्टि वह नार्मल थी , बेटे की चाह ने फिर चक्रव्यूह में डाला तो परिणाम बेटे की तमन्ना परिपूर्ण , परन्तु मूक बधिर बहनों का भाई कहलाया । इतना होने के बावजूद परिवार तथा माँ बाप को भाग्य को कोसते कभी न देखा न सुना । समय अपने कदमों की गति से चलता गया । ईश्वर का आभार बड़ी बेटी की शादी सम्पन्न परिवार में हो गई । लेकिन दुर्भाग्य का बड़ा बादल ऐसा फटा बल्चों का पिता असाध्य रोग से पीड़ित इस संसार को अलविदा कह गया । उफ ! ‘ विदाई ‘ को समय इतना कम मिला कि गृहस्थी कि डोर ऊपर वाले के अतिरिक्त किसी और को थमा भी नहीं सका । जैसे – तैसे वर्ष बीते बेटा जवान हो गया , अब बारी उसका घर बसाने की जल आई तो एक ज्वलंत प्रश्ना शा जीवन संगिनी कैसी ? संजोग पूर्व जियोजित …. एक सुंदर , सुशील , सुशिक्षित मेल खाती बेटे अर्धांगिनी बनी । उत्सुकताव चिंता का विषय था कि भावी सन्तति कैसी ईश्वर तेरा न्याय अटल है ! फूल सा नाजुक , बहुत प्यारा राजकुमार सम बेटा दिया , तेरा शुक्रिया लेकिन माँ बाप जैसा ‘ । कोई शिकायत नहीं । इस बीच छोटी बेटी की शादी भी उच्च घराने में हो गई । अब परेशानी , भय डराने , सताने लगा आगे क्या होगा ? अधेड़ उम्र की अकेली जान कल की धूमिल परछाई से सदैव घबराई कि घर मे पाँव मूक बधिर लोग और मैं अकेली …. तो उसने ढाढस बंधाया , फुलवाड़ी में महकती कली मुस्काई । उसके होंठों से निकला एक – एक शब्द शबनम के मोती लगने लगा । घर में दादी , पोती सुनले बोलने वाले हो गए । भविष्य सुरक्षित लगने लगा । चार वर्ष बीते , पर इस खबर ने अंदर बाहर तूफान सा खड़ा कर दिया कि बहू के पैर फिर से ‘ भारी हैं । सब के चेहरों पर चिंताओं की लकीरे खिंच गई जो स्वाभाविक थी । सभी सोचने लगे क्या होगा ? क्या करें ? डॉ.से सम्पर्क किया रिपोर्ट पोज़ीटिव थी , बच्चे को गिराने का मन बना लिया लेकिन डॉक्टर ने बहू का निरीक्षण करने पर अपनी असमर्थता स्पष्ट कह दी क्योंकि यह सब खतरे से खाली नही था । दिन , महीने बीते , सब के अंदर जो भय समाया था , छिपाने वाली बात ही नही । आखिर निश्चित दिन आ पहुँचा । सूर्य तो उस दिन भी वैसे ही उदित हुआ था लेकिन उस घर में उसकी किरणे विशेष ऊर्जा से पहुंची थी । एक नन्हा अपनी पहली रोने की आवाज़ से अपना परिचय दे चुका था । पहले 15 दिनों में ही डॉ . ने घोषित कर दिया था कि बच्चा पूर्णत : नॉर्मल है । ऐसी परिस्थितियों में किसी घर में अगर ऐसा विराग जब जलता है तो आप खुद ही अनुमान लगाएँ उस अंतर्यामी का अभिन्न अंग , बेहद प्यारा , बेअंत सुंदर जीव आज वह 6 मास का हो गया है , मैं उठते बैठते न जाने कितनी बार ईश्वर की उदारता , कृपा दृष्टि व् सहानुभूति की ऋणी हूँ जिसने परिवार को इतना बड़ा उपहार दिया , उपकार किया । अब घर में सुनने , बोलने वाले तीन हो गए थे । कभी 2 सोचती हूँ क्या ऐसे भी हो जाता है ? तेरा कोटि धन्यवाद है !प्रभु प्रस्तुति: बुआ कविता गुप्ता

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